कंप्यूटर का विकास और इतिहास हिंदी में History of computer in Hindi

 

अगर आप जानना चाहते हैं की कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer in Hindi) क्या था और अभी हम कोनसे कंप्यूटर के पीढ़ी (Generation History of Computer in Hindi) में है और भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत कब हुई, तो मैं आपको यहाँ कंप्यूटर के इतिहास, कंप्यूटर के पीढ़ी और भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत की पूरी जानकारी दूंगा वो भी हिंदी में जो की आपकी मात्र भाषा है।

कंप्यूटर का इतिहास (History of computer in Hindi)

कम्प्यूटर का परिचय (Introduction to Computers) उस समय के बारे में सोचिए जब किसीसाधारणसी गणना के लिए काफी समय लगता था

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, सन् 1880 में हुई अमेरिकी जनगणना जिसमें करीब सात वर्षों का समय लग गया था। लेकिन आज आधुनिक विश्व का स्वरूप पूर्णत: बदल चुका है,

जिसका सबसे बड़ा कारण है कम्प्यूटर आज इस आधुनिक विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश होगा, जो कम्प्यूटर तथा उसके गुणों का लाभ उठा रहा हो, फिर चाहे वह कोई विकसित देश हो या कोई विकासशील देश या फिर कोई गरीब देश।

हमारा देश भारत भी इससे अछूता नही है। 20वीं सदी के मध्य से आरम्भ हुआ यह सफर 21वीं सदी के भारत के लिए एक प्रकार से आवश्यकता बन गया है,

फिर चाहे वह किसी छोटीसी दुकान में रोजमर्रा के हिसाब रखना हो या फिर किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के लिए उसका अकाउण्ट संभालना हो, कम्प्यूटर तकनीक सभी जगह व्याप्त है।

यह कइना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज भारत ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में कम्प्यूटर सभी के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लेकिन यह कम्प्यूटर है क्या? चलिए जानते हैं।

साधारण से शब्दों में कहें तो कम्प्यूटर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जो विभिन्न प्रकार के अंकगणितीय और तार्किक कार्यों को पूर्ण करता है और विभिन्न प्रकार के निर्देशों का प्रयोग करके कई प्रकार के डाटा को उचित रूप से व्यवस्थित करता है।

दूसरे प्रकार से हम यह भी कह सकते हैं कि कम्प्यूटर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो किसी यूजर से इनपुट प्राप्त करता है, उस इनपुट के आधार पर प्रोसेसिंग करता है और प्राप्त परिणाम आउटपुट के रूप में प्रदान करता है।

क्या कभी आपने यह सोचा है कि आखिर कम्प्यूटर इतना आवश्यक और महत्त्वपूर्ण क्यों है? जरा सोचिए, आज हम टेलीविजन पर बिना किसी समस्या के अपनी इच्छानुसार कार्यक्रम देखते हैं, लाइव कार्यक्रम देखते हैं,

जब आप अपने बैंक खाते में जमा पैसे एटीएम के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं, यहा तक कि दुनिया भर में कहीं भी घूमतेफिरते अपने घर वालों से बातचीत कर सकते हैं, यह सब किसकी वजह से सम्भव हुआ है? कम्प्यूटर की वजह से।

Click here – कम्प्यूटर क्या है? पूरी जानकारी हिंदी में What is Computer in Hindi

इतना ही नहीं, आज दुनिया के सभी विकासात्मक और उत्पादक कार्य कम्प्यूटर के द्वारा ही पूरे किये जा रहे है फिर चाहे वह शरीर की कोई सामान्य पैथोलॉजिकल जाँच हो या कृत्रिम उपग्रहों को चलाना या फिर बड़ीबड़ी गाडियों का निर्माण करना, सब कुछ कम्प्यूटर के विकास के करण ही सम्भव हो सका है।

अगर हम कम्प्यूटर को वर्तमान समय की हाइटेक मशीन समझकर मात्र एक संगणक यन्त्र समझे (जिससे इसका विकास एक हाइटेक मशीन के रूप में है) तो इसका इतिहास हमें हुआ 3000 साल पीछे ले जाता है,

जब अबेकस (Abacus) का विकास हुआ था। यह एक यान्त्रिक उपकरण है, जिसका प्रयोग आज भी चीन, जापान जैसे कई एशियाई देशों में किया जाता है। यह उपकरण स्लेट जैसा दिखने वाली एक डिवाइस होती है, जिसके बीच में कुछ तार लगे होते हैं।

इन तारों में मिट्टी के कुछ मोती एक निश्चित संख्या में होते हैं, जिनके आधार पर ही गणना की जाती है। अबेकस से जोड़ने, घटने, गुणा करने और भाग देने जैसे कार्य बड़ी आसानी से किये जा सकते हैं।

अबेकस के विकास के कई सदियों बाद सन् 1645 में फ्रांस के गणितज्ञ ब्लेज पास्कल ने मैकेनिकल डिजिटल कैलकुलेटर का आविष्कार किया, जिसेपास्कलाइननाम दिया गया।

इस मशीन को एडिग मशीन भी कहा जाता है, क्योंकि यह केवल जोड़ने और घटाने का काम ही कर सकती थी। इस मशीन की तकनीक का प्रयोग आज भी आप अपनी गाड़ियों के ओडोमीटर (Odometer) में देख सकते हैं।

आपने देखा होगा कि किस प्रकार से कार या स्कूटर के स्पीडोमीटर में दिये गये डिजिट दूरी तय करने पर एक एक अंक बढ़ते जाते है। इसी प्रकार से पास्कलाइन में कुछ चकरियाँ होती थीं, जिन के दाँतों में 0 से 9 तक के अंक छपे होते थे। इन दाँतों को घुमाकर ही जोड़ने और घटाने का काम किया जाता था।

सन् 1801 में एक फ्रांसीसी बुनकर जोसेफ मेरी जैकडं ने एक ऐसे लूम का आविष्कार किया, जिसके द्वारा कपड़ों में विभिन्न पैटर्न के डिजाइन दिये जा सकते थे। इसमें सबसे ज्यादा सुविधा वाली बात यह थी कि यह स्वत: ही कपड़ों को पैटर्न देता था।

ये सभी पैटर्न कार्डबोर्ड के पंचकार्ड्स से नियन्त्रित होते थे, जिनमें कई छिद्र होते थे। पंच केस से कम्प्यूटर के विकास में काफी सहायता मिली, क्योंकि इनसे ही दो विचारधाराओं की उत्पस्ति हुई।

पहली कि किसी सूचना को पंचकार्ड्स जैसी डिवाइस में संगृहित किया जा ता है और दूसरा यह कि इनका प्रयोग किसी कार्य को करने के लिए निर्देशों के रूप में भी किया जा सकता है.

कम्प्यूटर के इतिहास में अगर उन्तीसवीं शताब्दी को कम्प्यूटर का स्वर्णयुग कहा जाये, तो शायद गलत नहीं होगा। अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज को हाथों से बनायी गयी सारणियों के आधार पर गणना करने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता था, क्योंकि इनमें काफी त्रुटियाँ आती थी।

इन समस्याओं को समाप्त करने के उद्देश्य से चार्ल्स बैबेज (Charles Babbage)ने सन् 1882 में एक यान्त्रिक गणना मशीन का निर्माण किया, जिसके निर्माण का पूरा खर्च ब्रिटिश सरकार ने उठाया।

एनालिटिकल इंजिन (Analytical Engine) नामक यह मशीन शक्तिशाली कई गणानाएँ करने में सक्षम थी। यह केवल सूचनाओं को पंचकार्ड में संग्रहित कर सकती थी

बल्कि उनमें संग्रहित निर्देशों के आधार पर कार्य भी कर सकती थी। यह एनालिटिकल इंजिन ही आधुनिक कम्प्यूटर्स का मूल बना, जिस वजह से चार्ल्स बैबेज़ कम्प्यूटर विज्ञान के जनक (Father of Computers) कहलाये

हालाँकि विकास की शुरुआत में ज्यादातर लोगों ने यह माना कि एनालिटिकल इंजिन किसी काम का नहीं है। लेकिन प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की बेटी एडा ऑगस्टा (Ada Augusta) ने चार्ल्स बैबेज पर विश्वास किया और इंजिन में गणना के निर्देशों का विकास करने में चार्ल्स की सहायता की।

इस प्रकार से एडा ऑगस्टा कम्प्यूटर विज्ञान जगत् की पहली कम्प्यूटर प्रोग्रामर कहलायीं। एडा ऑगस्टा के सम्मान में एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम भीएडा (ADA) रखा गया है।

1880 का दशक अमेरिका की जनगणना के लिहाज़ से काफ़ी मुश्किलों भरा था। असल में सन् 1880 से शुरू की गयी जनगणना को समाप्त होने में करीब सात वर्ष का समय लग गया था।

इतना समय लग जाने के कारण सरकार परेशान थी, क्योंकि इतना समय लगने की वजह से पहले ही यह अनुमान लगा लिया गया था कि सन् 1890 की जनगणना सन् 1900 की जनगणना शुरू होने से पहले पूरी नहीं हो पायेगी।

उन दिनों हरमन हौलेरिथ एक शिक्षक हुआ करते थे। उन्होंने जनगणना विभाग की इस समस्या का समाधान करने के लिए टैबुलेटिंग मशीन (Tabulating Machine) की स्थापना को,

जिसकी वजह से सन् 1890 में शुरू को गयी जनगणना मात्र 3 माह में पूरी हो गयी (हालाँकि अलगअलग स्रोतों के अनुसार यह समय अलगअलग है) होलेरिथ की यह मशीन पंचकार्डों को विद्युत् द्वारा संचालित करती थी।

मशीन के लिए विशेष रूप से बनाये गये मॉडर्न स्टैण्डर्ड पंचकाईस (Modern Standard Punch cards) को उन्होंने पेटेण्ट करवाया और 1896 में टैबुलेटिंग मशीन कम्पनी (Tabulating Machine Company) की स्थापना को,

जिसे बाद में इंटसेशनल बिजनेस मशीन (International Business Machine) के नाम से जाना गया, जो आज विश्व की अग्रणी कम्प्यूटर निर्माता कम्पनियों में से एक है।

1940 के दशक तक इलेक्ट्रोमैकेनिकल कम्प्यूटिंग (Electro- Mechanical Computing) काफी विकसित हो चुकी थी। सन् 1944 में डॉ. हावर्ड आईकेन ने आई.बी.एम. के कुछ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर विश्व के पहले इलेक्ट्रोमिकैनिकल कम्प्यूटर का निर्माण किया, जिसे ऑटोमेटिक सीक्वेंस कंट्रोल कैलकुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) कहा गया।

कम्प्यूटर का निर्माण होने के बाद इसे हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय ले जाया गया, जहाँ इसका नाम रखा गया मार्क-1 (Mark-l) 4500 किलोग्राम वजनी यह कम्प्यूटर 6 सेकण्ड में एक गुणा कर सकता था और 12 सेकण्ड में एक भाग की क्रिया कर सकता था।

सन् 1937 से 1942 के बीच एटनासॉफ और क्लिफॉर्ड बेरी ने विश्व के पहले इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर का निर्माण किया, जिसे नाम दिया गया एटनासॉफबेरी कम्प्यूटर (Atanasoff Berry Computer) या .बी.सी। हालांकि विकास के बाद इस कम्प्यूटर को कुछ खास प्रसिद्धि नहीं मिल पायी जिस वजह से सन् 1960 में पुन: इसे नये रूप में लांच किया गया।

कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ(Generations History of Computer in Hindi)

कम्प्यूटर की पीढ़ीयों से तात्पर्य सन् 1940 के बाद से शुरू हुए उस समयकाल से है, जिसमें कम्प्यूटर तकनीक का सबसे तेजी से विकास हुआ।

हर पीढ़ी में कम्प्यूटर्स तकनीक में विकास होता गया, साथ ही उनके आकार में भी परिवर्तन आता गया किसी पीढ़ी के कंप्यूटर्स में क्या खास था, चलिए जानते हैं।

  • प्रथम पीढ़ी (First Generation ): 1946 – 1956
  • द्वितीय पीढ़ी (Second Generation ): 1956 – 1964
  • तृतीय पीढ़ी (Third Generation): 1964 1971
  • चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation): 1971 – वर्तमान
  • पंचम पीढ़ी (Fifth Generation): वर्तमान और भविष्य

प्रथम पीढ़ी(First Generation History of Computer in Hindi)

प्रथम पीढ़ी की शुरुआत 1946 से होती है, जब एकर्ट और मुचली ने एनियक(ENIAC) का विकास किया।

कम्प्यूटर में वैक्यूम ट्यूब्स का प्रयोग किया जाता था, जिनका आविष्कार 1904 में किया गया था।

इस पीढ़ी के कम्प्यूटर पंचकार्ड्स पर आधारित थे।

मेमोरी के लिए मैग्नेटिक ड्रम का प्रयोग भी होता था

इनका आकार बहुत ज्यादा बड़ा होता था तथा नाजुक और कम विश्वसनीय थे।

चूँकि कम्प्यूटर बहुत जलते गरम हो जाते थे, इसलिए कई सारे एयरकण्डीशनर्स का प्रयोग किया जाता था

प्रोग्रामिंग के लिए केवल मशीनी और असेम्बलिंग भाषा का प्रयोग किया जा सकता था। यानी कोई भी ऐसा प्रोग्रामर कम्प्यूटर्स का प्रयोग नहीं कर सकता था, जिसे मशीनी या अस्नेम्बलिंग भाषा आती हो।

एक क्यूबिक फुट में करीब 1000 सर्किट होते थे।

द्वितीय पीढ़ी (Second Generation History of Computer in Hindi)

इस पीढ़ी से कम्प्यूटर्स के आकार में कमी आना शुरू हुई। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर्स में ट्राजिस्टर्स का प्रयोग किया जाता था, जिनका आविष्कार सन् 1947 में किया गया था।

ट्रांजिस्टर आकार में वैक्यूम ट्यूब से काफी छोटे थे, जिस वजह से वे कम स्थान लेते थे और कम ऊर्जा भी निकलती थी।

एक क्यूबिक फूट में 1 सर्किट। लाख

प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की तुलना में सस्ते और रखरखाव में भी कम खर्च करना पड़ता था।

कोबोल (COBOL) और फोरट्रॉन (FORTRAN) जैसी उच्च स्तरीय भाषाओं के प्रयोग विकास किया गया।

स्टोरेज डिवाइस, प्रिन्टर और ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रयोग होने लगा था।

तृतीय पीढ़ी (Third Generation History of Computer in Hindi)

1964 से शुरू हुई कम्प्यूटर को तीसरी पीढ़ी ने इसे एकीकृत सर्किट (Integrated Circuit or IC) प्रदान किये।

आई.सी. ने कम्प्यू टर के आकार को और भी छोटा कर दिया, जिस वजह से वे वजन में हल्के भी हो गये।

पिछली दोनों पीढ़ीयों की तुलना ये काफ़ी ज्यादा विश्वसनीय थे। में

इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वृहद रूप से उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं का प्रयोग होता था

एक वर्गफुट में 1 करोड़ सर्किट थे।

चतुर्थ (Fourth Generation History of Computer in Hindi )

सन् 1971 से शुरू हुई चौथी पीढ़ी अभी तक जारी है।

इस पीढ़ी में एकीकृत सर्किट को और भी उन्नत करके विशाल एकीकृत सर्किट (Large Integrated Circuit or LIC) का निर्माण किया गया।

एक वर्ग फुट में अरबों सर्किट। आकार में अद्भुत कमी। कम्प्यूटर

इनसानों की जेब तक पहुँच गये।

कम्प्यूटर उपयोग करने के लिए अब एयरकण्डीशनर की आवश्यकता नहीं होती।

मेमोरी क्षमता पहले की तुलना में हजारों गुना अधिक।

विभिन्न प्रकार के नेटवर्क का विकास किया गया।

पंचम पीढ़ी (Fifth Generation History of Computer in Hindi )

कम्प्यूटर्स को अपनी क्षमता के चरम पर पहुँचाने की कोशिश।

वैज्ञानिक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) युक्त कम्प्यूटर्स का विकास करने में प्रयासरत हैं, जो किसी मुश्किल का हल इंसानों की तरह खुद सोचकर निकालेगा।

पीढ़ी के आस्था में, कम्नप्यूटरों की एकदूसरे से जोड़ा गया ताकि इनमें संगृहीत डाटा का आदानप्रदान किया जा सके।

इस पीढ़ी में प्रतिदिन कम्प्यूटर के आकार का घटाने का प्रयास किया गया है, जिसकी वजह से अब कप्नयूटर आपकी जेब में भी है।

पुराने वेरी लार्ज स्केल इण्टीग्रेटेड Hinc (Very Large Scale In tegrated Circuit) को नये अल्ट्रा लार्ज स्केल इण्टीग्रेटेड सर्किट (Ultra Large Scale Integrated Circuit) ने प्रतिस्थापित करना शुरू कर दिया

भारत में कम्प्यूटर युग की शुरुआत (Indian History of Computer in Hindi)

भारत में कम्प्यूटर युग की शुरुआत हुई थी, सन् 1952 भारतीय सांख्यिकी संस्थान (Indian Statistical Institute, आई. एस. आई.) कोलकाता से सन् 1952 में आई.एस.आई. में एक एनालॉग कम्प्यूटर की स्थापना की गयी थी, जो भारत का प्रथम कम्प्यूटर था।

यह कम्प्यूटर 10×10 को मैट्रिक्स को हल कर सकता था। इसी समय भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु (Indian Institute of Science, Bengaluru) में भी एक एनालॉग कम्प्यूटर स्थापित किया गया था,

जिसका प्रयोग अवकलन विश्लेषक (Differential Analyzer) के रूप में किया जाता था। लेकिन इन सबके बाद भी भारत में कम्प्यूटर युग की वास्तविक रूप से शुरुआत हुई सन् 1956 में, जब आई.एस.आई. कोलकाता में भारत का प्रथम इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर HEC-2M स्थापित किया गया।

यह कम्प्यूटर केवल भारत का प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर होने के कारण ही खास नहीं था, बल्कि इसलिए भी खास था, क्योंकि इसकी स्थापना के साथ ही भारत, जापान के बाद एशिया का दूसरा ऐसा देश बन गया था,

जिसने कम्प्यूटर तकनीक को अपनाया था अर्थात् यदि आप जापान को एशिया महाद्वीप का भाग माने, तो HEC-2M भारत का ही नहीं, बल्कि एशिया का प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर बन जाता है।

यद्यपि यह भारत का प्रथम कम्प्यूटर नहीं है लेकिन HEC-2M ने ही सही मायनों में भारत में कम्प्यूटर तकनीक की शुरुआत की। वास्तव में HEC-2M का निर्माण भारत में होकर इंग्लैण्ड में हुआ था, जहाँ से इसे आयात करके ISI में स्थापित किया गया था।

इसका विकास एण्ड्रयू डोनाल्ड बूथ द्वारा किया गया था, जो उस समय लन्दन के बर्कबैक कॉलेज (Berkback College)में कार्यरत प्रोफेसर थे।

यह कम्प्यूटर 1024 शब्द की ड्रम मेमोरी युक्त एक 16-बिट का कम्प्यू टर था, जिसका संचालन करने के लिए मशीन भाषा का प्रयोग किया जाता था तथा इनपुदट और आउटपुट के लिए पंचकाईस का प्रयोग किया जाता था,

लेकिन बाद में इसमें प्रिन्टर भी जोड़ दिया गया। चूँकि यह देश का प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर था, इसलिए सम्पूर्ण देश से विभिन्न प्रकार को वैज्ञानिक समस्याओं का समाधान इस कम्प्यूटर से किया जाता था,

जैसे, सुरक्षा विभाग तथा प्रयोगशालाओं से सम्बन्धित समस्याएँ, विभिन्न प्रकार के विश्लेषण आदि। लेकिन यह विकास गाथा यहीं समाप्त नहीं होती हैं। सन् 1958 में ISI में URAL नामक एक अन्य कम्प्यूटर स्थापित किया गया, जो आकार में HEC 2M से भी बड़ा था।

इस कम्प्यूटर को रूस से खरीदा गया था। यह नाम वास्तव में रूस की एक पर्वतश्रृंखला का नाम है और चूंकि यह कम्प्यूटर भी रूस से खरीदा गया था, इस कारण से इस कम्प्यू टर को यह नाम दिया गया।

यह कम्प्यूटर क्षैतिज मैग्नेटिक टेप युक्त एक 32 बिट कम्प्यूटर था, जिसमें इनपुट के रूप में पंचकार्ड्स तथा आउटपुट के रूप में प्रिन्टर का प्रयोग किया जाता था।

सन् 1964 में इन दोनो कम्प्यूटर्स को तब विराम दे दिया गया, जब IBM ने ISI में अपना कम्प्यूटर 1401 स्थापित किया। IBM1401, IBM1400 श्रृंखला का पहला कम्प्यूटर था, जिसे IBM द्वारा सन् 1959 में विकसित किया गया था,

जो कि एक डाटा प्रोसेसिंग सिस्टम कम्प्यूटर था इस कम्प्यूटर में मुख्य रूप से 1401 प्रोसेसिंग यूनिट थी, जो एक मिनट में 1,93,300 योग को गणनाएँ कर लेती थी।

साथ ही साथ इस कम्प्यूटर में इनपुट के लिए पंचकाईस के साथसाथ मैग्नेटिक टेप तथा ऑउटपुट के लिए IBM 1403 प्रिन्टर का प्रयोग किया जाता था।

इन सभी कफ्यूटरों में जो एक समानता थी, वह यह थी कि ये सभी कम्प्यूटर भारत में विकसित नहीं हुए थे, बल्कि इन्हें दूसरे देशों से खरीदा गया था।

भारत में विकसित किया गया पहला कम्प्यूटर था ISI-JUA| इस कम्प्यूटर का विकास सन् 1966 में दो संस्थाओं भारतीय सांख्यिकी संस्थान तथा जादवपुर यूनिवर्सिटी (Jadavpur University) द्वारा किया गया था, जिस कारण से इसे ISI-JU नाम दिया गया।

HEC-2M तथा URAL दोनों ही वैक्यूम ट्यूब युक्त कम्प्यूटर थे, जबकि ISI-JU एक ट्रांजिस्टर युक्त कम्प्यूटर था। इस कम्प्यूटर का विकास भारतीय कम्प्यूटर तकनीक के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था,

यद्यपि यह कम्प्यूटर व्यावसायिक कम्प्यूटिंग आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं करता था, जिस कारण से इसके द्वारा कोई विशिष्ट कार्य नहीं किया गया।

भारत में कम्प्यूटिंग विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण चरण आया 90 के दशक में, जब पूणे में स्थित प्रगतिशील संगणन विकास केन्द्र (Centre for Development of Ad- vanced Computing) में भारत का प्रथम सुपरकम्प्यू टरपरम-8000′ का विकास किया गया।

PARAM का अर्थ है Paral lel Machine जो कि आज सुपरकम्प्यू टर्स की एक श्रृंखला है। परम का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे : बायोइन्फॉर्मेटिक्स के क्षेत्र में, मौसम विज्ञान के क्षेत्र में, रसायन शास्त्र के क्षेत्र में आदि।

यद्यपि पर्सनल कम्प्यूटर्स के जाने के कारण आज भारत के कई कारण घरों में, कार्यालयों में कम्प्यूटर तकनीक अपने पैर पसार रही है, लेकिन इन सभी एनालॉग, मेनफ्रेम तथा सुपरकम्प्यू टर्स ने भारत को एक विकासशील देश बनाने में अपना अमूल्य योणादान दिया है।

आसा करता हु की आपको कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer in Hindi) क्या है उसका बेसिक ज्ञान हो गया होगा आप अच्छे से जान गए होंगे की, की कम्प्यूटर का शुरुआत किसने किया और कैसे हुआ और आपको ये भी जानकारी हो गयी होगी की अभी कंप्यूटर की कोंसी पीढ़ी चल रही है और भारत में कंप्यूटर का युग कब सुरु हुआ। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

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