If you searching for the best Poem on Moon in Hindi then you are in the right place. Here I’m sharing with you a unique Poem on Moon in Hindi which is really amazing and interesting I’m sure you will like it and appreciate it. These emotional poems also encourage you in your life.
1.मेरा इक ख़्वाब Poem on Moon in Hindi
मेरा इक ख़्वाब जो टूटा पड़ा था सहर के पाँव से टकरा गया था
यहाँ जो झील है यूँ ही नहीं है यहाँ पर टूट कर तारा गिरा था
मैं जब तक जाग पाता नींद के हाथ थकन का माल सारा लुट चुका था
वो शब पूनम की थी, उसकी कमर पर मुकम्मल चाँद का टैटू बना था
वो उस जंगल में धीमी पड़ गयी थी नदी के पाँव में काँटा चुभा था
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- किरन इक मोजिज़ा सा कर गयी है Poem on Moon in Hindi
किरन इक मोजिज़ा सा कर गयी है धनक कमरे में मेरे भर गयी है
उचक कर देखती थी नींद तुमको लो ये आँखों से गिर कर मर गयी है
ख़ामोशी छिप रही अब सदा से ये बच्ची अजनबी से डर गयी है
खुले मिलते हैं मुझको दर हमेशा मेरे हाथों में दस्तक भर गयी है?
उसे कुछ अश्क लाने को कहा था कहाँ जा कर उदासी मर गयी है?
उजालों में छिपी थी एक लड़की फ़लक का रंग–रोगन कर गयी है
अभी उभरेगी वो इक साँस भरने नदी में लहर जो अन्दर गयी है
- एक गीला दिन टंगा था Poem on Moon in Hindi
एक गीला दिन टंगा था तार पर धूप होने के न थे आसार पर
घर के बगीचे की बोगनवेलिया झाँकती है चढ़ के इक दीवार पर
चाँद कितनी देर तक ठहरा रहा बनके आँसू रात के रुख़सार पर
ज़हन पर तारी है तेरा ध्यान यूँ एक तनहा अब्र जूँ कुमार पर
कितने सारे काम हैं छुट्टी के दिन फिर बुरी बीतेगी इस इतवार पर
रक्स में रहती है हर दम कायनात एक अज़ली अनसुनी झनकार पर
धीरे–धीरे सो गयी हर इक सदा रह गयी इक ख़ामुशी बेदार पर
आपसे ‘आतिश‘ मुहब्बत, और मैं पाँव बेहतर हैं मिरे अंगार पर
- किसी ने भी न मिरी ठीक तर्जुमानी Poem on Moon in Hindi
किसी ने भी न मिरी ठीक तर्जुमानी की धुआँ–धुआँ हैं फ़ज़ा मेरी हर कहानी की
चलो ! निकालो मिरे पाँव में चुभा तारा ज़मीं की सत्ह तुम्हीं ने तो आसमानी की
ये वक़्त लंबे दिनों का है सो ये रातें अब बढ़ा रही हैं उदासी ही रातरानी की
मैं रो के उट्ठा तो आँखों से रेत झड़ने लगी कि तिश्नगी ही वसीयत है खारे पानी की
नदी किनारे लगा देती थी, सो क्या करते किसी तरह से भँवर हमने जिंदगानी की
तिरा ख़याल हुआ कैनवस पे मेहमाँ कल तमाम रंगों ने मिल–जुल के मेज़बानी की
गुनाहे–इश्क़ किया और कोई सज़ा न हुई! जुरुर तुमने सुबूतों से छेड़खानी की
- ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी Poem on Moon in Hindi
ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी की आँखें पीछे छूट गयीं सैलानी की
कैरम हो, शतरंज हो या फिर इश्क़ ही हो खेल कोई हो हमने बेईमानी की
कैद हुई हैं आँखें ख्वाब–जज़ीरे पर सज़ा मिली है इनको काले पानी की
दीवारों पर चाँद सितारे रौशन हैं बच्चों ने देखो तो क्या शैतानी की
चाँद की गोली रात ने खा ही ली आखिर पहले तो शैतान ने नौकरानी की
जलते दिये सा इक बोसा रख कर उसने चमक बढ़ा दी है मेरी पेशानी की
मैं उसकी आँखों के पीछे भागा था जब अफ़वाह उड़ी थी उनमें पानी की
जब भी उसको याद किया हम बुझ बैठे
‘आतिश‘ हमने अक्सर ये नादानी की
- उदासी से सजे रहिये Poem on Moon in Hindi
उदासी से सजे रहिये कोई रुत हो हरे रहिये जो डूबी है सराबों में वो कश्ती ढूँढते रहिये
वो पहलू जैसे साहिल है तो साहिल से लगे रहिये पड़े रहना भी अच्छा है मुहब्बत में पड़े रहिये
भँवर कितने भी प्यारे हों किनारे पर टिके रहिये समय है गश्त पर हर पल जहाँ भी हों छिपे रहिये
ख़ुदा गुज़रे न जाने कब ख़ला में देखते रहिये रज़ाई खींचिए सर तक सहर को टालते रहिये
कटेगा ये पतंगों सा फ़लक को देखते रहिये वो ऐसे होंट हैं के बस हमेशा चूमते रहिये
यही करता है जी ‘आतिश‘ कि अब तो बस बुझे रहिये
- अभी न आएगा जानाँ उतार Poem on Moon in Hindi
अभी न आएगा जानाँ उतार पानी में घुला हुआ है तिरा इन्तज़ार पानी में
अभी–अभी ही नदी में उतार आया है उतर रही है बतों की क़तार पानी में
नदी में हमने भी एक बार जाल फेंका था कोई करे न हमारा शिकार पानी में
ये बोट फ़त्ह भी कर पायेगी समन्दर को ? उड़ा रही है जो आबी–गुबार पानी में
पिघलती बर्फ़ है शायद पहाड़ का आंसू उदास लगते हैं ये देवदार पानी में
मैं खींच लाता हूँ आँखों को अपनी ख़ुश्की पर ये लौट जाती हैं पर बार–बार पानी में
है आस–पास कहीं कश्तियों के सौदागर कि डूबती है मिरी रहगुज़ार पानी में
नदी ही ला के किनारे पे अब उसे पटके करेगा कौन भँवर का शिकार पानी में
सुकून झील पे इक लय में बह रहा है, ज्यूँ बजा रही हो ख़मोशी सितार पानी में
बदल रहे हैं बगूले मिरे भँवर में अब कि डूबता है मिरा रेगज़ार पानी में
- चलेगा वही शख़्स बाज़ार Poem on Moon in Hindi
चलेगा वही शख़्स बाज़ार में कोई पेंच हो जिसके किरदार में
सुना है जलाये गये शहर कल धुआँ तक नहीं लेकिन अख़बार में
हवा आयेगी आग पहने हुए समा जायेगी घर की दीवार में
सिमटती हुई शाम–सी लड़कियाँ शफ़क़ हैं छिपे उनके रुखसार में
कहानी वहाँ है, जहाँ मौत ही नई जान डालेगी किरदार में
अब इनके लिये आँखें पैदा करो नये ख्वाब आये हैं बाज़ार में
संभल कर मिरी नींद को छू सहर हैं सपने इसी काँच के जार में
मेरे पाँव की आहटें खो गयीं इन्हीं ज़र्द पत्तों के अम्बार में
ढही तो ये जाना सहर थी चिनी इसी सर्द कोहरे की दीवार में
क़रीब आयीं यादें जो ‘आतिश‘ तिरे लगी आग काग़ज़ के अम्बार में
- चारों ओर समन्दर है Poem on Moon in Hindi
चारों ओर समन्दर है मछली होना बेहतर है
हैं महफूज़ अलफ़ाज़ जहाँ सन्नाटा वो लड़की है
कुछ तो बाहर है कश्ती कुछ पानी के अन्दर है
नींद का रस्ता है छोटा जिसमें ख़्वाब की ठोकर है
मुझसे भँवर घबराते हैं मेरे पाँव में चक्कर है
आँखों में चुभती है नींद मेरी घात में बिस्तर है
मैं भी तो इक रात ही हूँ चाँद मिरे भी अन्दर है
- अपनी ही ईंटों की अनबन Poem on Moon in Hindi
अपनी ही ईंटों की अनबनमें गिरी घर की हर दीवार आँगन में गिरी
हर तरफ़ हमशक्ल इनके हो गये आँसुओं की साख सावन में गिरी
भोर से टकरा के सूरज गिर पड़ा धूप छिटकी सबके आँगन में गिरी
जल उठा दिल यक–ब–यक इक याद से एक उल्का जैसे इक बन में गिरी
तीर–सा मारा तुम्हारी याद ने ग़म की इक चिड़िया मिरे मन में गिरी
बुझ गया ‘आतिश‘ हमेशा के लिए उसपे इक बिजली–सी सावन में गिरी
- कैसी–कैसी खूबसूरत कितनी प्यारी Poem on Moon in Hindi
कैसी–कैसी खूबसूरत कितनी प्यारी मछलियाँ जाल में पानी के फँस जाती हैं सारी मछलियाँ
शाम होते ही उदासी चल पड़ी चुनने उन्हें दिन के साहिल पर पड़ी हैं ग़म की मारी मछलियाँ
दिल के दरिया में जो आई शाम चारा फेंकनें सत्ह पर आने लगीं यादों की सारी मछलियाँ
अश्क गर सूखे तो सारे ख्वाब मारे जायेंगे सह नहीं पायेंगी इतनी अश्कबारी मछलियाँ
इक जज़ीरा बस वही सारे समन्दर में है, पर ताक में बैठी हुई हैं वाँ शिकारी मछलियाँ
खुश नहीं हूँ पार करके भी तुम्हें मैं जाने क्यूँ ओ समन्दर ! याद आती है तुम्हारी मछलियां
- जब भी दिख जाएँ वो हैरत Poem on Moon in Hindi
जब भी दिख जाएँ वो हैरत करना ऐसे रंगों की हिफ़ाज़त करना
उसका मुझसे यूँ ही लड़ लेना और घर की चीज़ों से शिकायत करना
काम ये कोई भी कर देगा पर इश्क़ ! तुम मेरी वज़ाहत करना
इससे पहले के उसे देखो तुम ठीक से सीख लो हैरत करना
मेरे ता‘वीज़ में जो काग़ज़ है उसपे लिक्खा है ‘मुहब्बत करना
रोकना उसको बना कर बातें कुछ न हो गर तो शिकायत करना
- इस दुनिया–ए–इम्कानी में Poem on Moon in Hindi
इस दुनिया–ए–इम्कानी में आँखें खोलीं हैरानी में
सुख–दुःख की खींचा–तानी में सारे अश्क परेशानी में
उम्रकि फ़स्ल है पल–पल बढ़ती मैं कि बिजूका निगरानी में
मुद्दत से सैराब है नद्दी कितना पानी है पानी में
पेशानी पर बल हैं तेरे क्या है तेरी पेशानी में ?
आईना बहता दरिया अक्सर बह जाये पानी में
जंगल से निकली पगडण्डी हैं सब देख के हैरानी में
बेदारी जाने दे मुझको होंगे ख़्वाब परेशानी में
फिर से जिस्म पहनना होगा? मैं अच्छा हूँ उरियानी में
छन से बुझ जाओगे ‘आतिश‘ गर तुम उतरोगे पानी में
- गुज़िश्ता वक़्तों के बूढ़े Poem on Moon in Hindi
गुज़िश्ता वक़्तों के बूढ़े क़िस्से तलाश करता मैं उनमें आधे–अधूरे रिश्ते तलाश करता
मैं दिल की जानिब कभी न लौटा, प‘ लौटता तो पहाड़, जंगल, घटायें, झरने तलाश करता
न जाने किन जंगलों में माज़ी के खो गया हूँ मैं तेरी यादों के धुंधले साये तलाश करता
अजब मुसव्विर है दिल यहीं आस–पास होगा वो आसमाँ पे धनक के टुकड़े तलाश करता
तुम्हारी यादों से काश इक दिन हटाता मिट्टी मैं ज़ंग खाये तमाम लम्हे तलाश करता
वो सख़्त रस्ता था जिसपे यूँ ही पड़ी थी मंज़िल भटक गया हूँ मैं नर्म रस्ते तलाश करता
इन्हीं ख़लाओं में बन के आयी थी वो दुआ इक कोई तो तेरी सदा के टुकड़े तलाश करता
तेरे ख़यालों की नर्म मौजें ही चारसू थीं मैं उस समन्दर में क्यूँ जज़ीरे तलाश करता
ये दिन भी डूबा हमारा यूँ ही, जहाज़ों जैसे समन्दरों में पड़े ख़ज़ाने तलाश करता
मैं इक अँधेरी सहर का क़ैदी हुआ हूँ ‘आतिश‘ सभी की ख़ातिर नये उजाले तलाश करता
- तुमसे इक दिन कहीं मिलेंगे Poem on Moon in Hindi
तुमसे इक दिन कहीं मिलेंगे हम ख़र्च खुद को तभी करेंगे हम
इश्क़ ! तुझको ख़बर भी है अबके तेरे साहिल से जा लगेंगे हम
आसमानों में घर नहीं होते मर गये तो कहाँ रहेंगे हम
धूप निकली है तेरी बातों की आज छत पर पड़े रहेंगे हम .
जो भी कहना है उसको कहना है उसके कहने पे क्या कहेंगे हम
रोक लेंगे मुझे तिरे आँसू ऐसे पानी पे क्या चलेंगे हम
वो सुनेगी जो सुनना चाहेगी जो भी कहना है वो कहेंगे हम
किसने रस्ते में ये उमीद रखी इससे टकरा के गिर पड़ेंगे हम
- दिल, जुबाँ Poem on Moon in Hindi
दिल, जुबाँ, ज़हन मेरे आज सँवरना चाहें सब के सब सिर्फ़ तेरी बात ही करना चाहें
दाग़ हैं हम तेरे दामन के सो ज़िद्दी भी हैं हम कोई रंग नहीं हैं कि उतरना चाहें
आरजू है हमें सहरा की सो हैं भी सैराब खुश्क हो जाएँ हम इक पल में जो झरना चाहें ये बदन है तेरा,
ये आम सा रस्ता तो नहीं इसके हर मोड़ पे हम सदियों ठहरना चाहें
ये सहर है तो भला चाहिए किसको ये कि हम शब की दीवार से सर फोड़ के मरना चाहें
जैसे सोये हुए पानी में उतरता है साँप हम भी चुपचाप तेरे दिल में उतरना चाहें आम से शख़्स के लगते हैं यूँ तो तेरे पाँव
सारे दरिया ही जिन्हें छू के गुज़रना चाहें
चाहते हैं के कभी ज़िक्र हमारा वो करें हम भी बहते हुए पानी पे ठहरना चाहें
नाम आया है तिरा जब से गुनहगारों में सब गवाह अपनी गवाही से मुकरना चाहें
- धूप पानी में गुनगुनाती है Poem on Moon in Hindi
धूप पानी में गुनगुनाती है उसकी आवाज़ झिलमिलाती है
इक नदी है जो दिल के साहिल पर सर पटकती है लौट जाती है
दूर से आता देखकर मुझको शाम साहिल की मुस्कुराती है
छोड़ आता हूँ दूर शब को मैं और वो रोज़ लौट आती है
मुझको चुप भी कराती है वो ही याद ही शोर भी मचाती है
एक बिजली चमक के पल भर को शब की बाहें मरोड़ जाती है
तुझपे हर बात फबती है जाना हर समाअत को तू लुभाती है
मैं कि छुपता हूँ और याद तेरी दिल की दीवार छू के आती है
फ़ायदा है ये नाम रखने का वो मुझे नाम से बुलाती है
मेरी आँखों में नींद की चिड़िया शाम होते ही लौट आती है
चाहे कैसी भी मैं खुशी पहन आस्तीन पर अटक ही जाती है
शाख़ पर लैम्प जल उठेगा फिर फिर बया घोंसला बनाती है
देर से आने पर सहर को मैं डाँटता हूँ तो मुस्कुराती है मेरी बातें न काट पाये तो वो मेरे होंट काट खाती है
अपनी लौ से लिपट के रह ‘आतिश’ फिर हवा तेरी सिम्त आती है
- जो इक पत्ता था मेरी ख़ामोशी Poem on Moon in Hindi
जो इक पत्ता था मेरी ख़ामोशी का वो आख़िर हो गया बहती नदी का
वहीं बैठी मिली आवाज़ मेरी जहाँ तालाब है इक ख़ामोशी का
वो तकती ही नहीं है मुड़ के वर्ना बहुत सामान पीछे है नदी का
वहाँ से सरसरी कैसे गुज़रते वो पूरा शहर था तेरी हँसी का
ख़ुद इक तन्हाई के जंगल में हैं हम किसे क़िस्सा सुनाएँ मोगली का
जहाँ से हम सदायें दे रहे थे कुआँ था वो हमारी तिश्नगी का
तिरी यादों के सय्यारे पे जानाँ कोई इम्काँ नहीं है ज़िन्दगी का
लगी है ख़्वाब में सीलन की दीमक करें तो क्या करें आँखें नमी का
पता जबसे ख़ुशी का पा गया है ठिकाना ही नहीं दिल की ख़ुशी का
जलाओ चाँद की वो शमा ‘आतिश‘ इलाक़ा आ चुका है तीरगी का
- समाअतों में बहुत दूर Poem on Moon in Hindi
समाअतों में बहुत दूर की सदा लेकर भटक रहा हूँ मैं इक ख़्वाब का पता लेकर
तुम्हारी याद बरस जाय तो थकान कम हो कहाँ–कहाँ मैं फिरूँ सर पे ये घटा लेकर
तमाम हिज्र के मारों–सा शब के दरिया में मैं खुद भी उतरा वही चाँद का घड़ा लेकर
तुम्हारा ख़्वाब भी आये तो नींद पूरी हो
मैं सो तो जाऊँगा नींद आने की दवा लेकर मैं खुद से दूर निकलता गया,
उधड़ता गया खुद अपनी ज़ात से निकला हुआ सिरा लेकर
बचा है मुझमें बस इक आख़िरी शरर ‘आतिश‘ कोई तो आये तेरी याद की हवा लेकर
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