If you are searching for a poem on nature in Hindi then you are in the right place, Here I’m sharing with you the top 10 best Poem on Nature in Hindi which is really amazing and interesting. These poems you can share with your friends and family and you can also use it on any kind of debate or in competition. Here It is.
- मिट्टी Poem on Nature in Hindi
कुछ रंग हवा में उड़ गये… रंग पानी में घुल गये… कुछ कुछ हासिल ना आया;
मिट्टी को… रंगो ने भी नाता तोड़ दिया; मिट्टी से… तू रोंदता है पाँव से;
मिट्टी को, तू देता भी नहीं जगह घर में; मिट्टी को,
शायद भूल गया… तू बना भी है तो; मिट्टी से…
किसी की जरुरत नहीं; मिट्टी को… निर्जीव है; पर सूरज भी चमक देता है; मिट्टी को…
पानी भी बार–बार मिलता है; मिट्टी को… मिट्टी से आदि, मिट्टी में ही अंत
इतना ना दे महत्त्व खुद को… मुक्ति भी मिलेगी तो बस मिट्टी से…
यु ना कर शांत खुद को कर शांति का तिलक… मिट्टी से!
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- सुर्खियांPoem on Nature in Hindi
है आज–कल की ये सुर्खियां सभी है रुख उल्टा हवाओं का मैं ना रहा पहले सा अभी
बह जा रहा हूँ उसी रुख में डूब रहा है सूरज, छा रहा अँधेरा अब इंतज़ार चाँद के उजाले का
है आज कल की ये सुर्खियां सभी मैं ना रहा पहले सा अभी जो खेल मैं खेल रहा हूँ
हूँ अनजान किसी के हर गांव से फिर भी जीत रहा हूँ मैं अभी क्यूंकि है रुख उल्टा हवाओं का
है असर किसी की बात का के मेरा नज़रिया बदल गया अभी मैं वो बोलू तो ‘वाह–वाह‘
मैं वो ना बोलू तो सुर्खियां जाने क्या है ये ऐसा असर ये असर मेरे नज़रिये का
मैं गुमशुम था अपने जीवन–कमरे में घर से निकल कर; मैंने अभी क्यों देखी ये दुनिया ग़मी
यु तो काफ़ी खूबसूरत है ये जहां पर मेरे ही नज़रिये की नज़र लग गयी मुझे
यहाँ है नहीं किसी की आदत इस बदनाम ग़म को बुलाने की पर हर ख़ुशी से पहले;
सुर्खियां इसी की आती है इसलिए रुख बदल दिए मैंने सभी मैं ना रहा पहले सा अभी !
- विद्यालय Poem on Nature in Hindi
जहाँ बस्ती थी ज्ञान की बूंदे हम भी गागर भर लेते थे उस विद्यालय की दीवारों से
हम भी गाथायें जोड़ लेते थे जो शुरुआत थी; अनुभव से… शिक्षा से…
जो जिंदगी से पहचान थी… सुबह–सुबह, जल्दी–जल्दी से होती जो तैयारियां; माँ के द्वारा
हम भी कई स्वांग किया करते थे उसी स्वांग में दबा देते उत्साह अपना
पर ‘बाल वाहिनी‘ को देखकर खुशी आँखों में उतर आ जाती थी “माँ नहीं जाना, नहीं जाना“
कहकर खुद ही उसमें बैठ जाते… पहुँचते ही विद्यालय प्रणाम होते, प्राथनायें होती
उसी विद्यालय की घंटी से हमारी अच्छी जान–पहचान थी वो बजती थी, हम बज उठते थे
विद्यालय की गोद में हम मासूमियत से खिल उठते थे… जहाँ अनुशासन था, स्नेह था, मित्रता थी,
भय भी था, जहाँ जीवन का सार था उस विद्यालय को प्रणाम, गुरुओं को प्रणाम…
जो मंदिर बसा है; मन के अंदर है विद्यालय !! तुझे शत शत नमन !!
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- प्रकृति रूप Poem on Nature in Hindi
ये तेज जल–प्रवाह का शोर नदियों में, समुद्र में, सरोवर में, जो; कुछ कह रहा है मुझसे
बह चल इस अपार नूर में खो जा प्रकृति के सौंदर्य में.. ये अदृश्य पवन की तेज गति
पतझड़ में पत्तो की बहार भिन्न–भिन्न; ये बादलो की कृतियों में समा गई नज़रे गगन में
एक पंक्ति में उड़ते नभचर जैसे फैला रहे सूर्योदय की लाली इंद्र के सतरंगी धनुष से निकलती
जल के बाणों की बौछार आद्र करती मेरे मन के रेगिस्तान को
ये ‘प्रकृति रूप‘ की कलाये–अदाये मुझे मोहित करती, मुझमें समाती
वनों के वृक्ष–जीव, चमन के फल–फूल, मयूर के मनमोहक नृत्य,
कोयल के मधुर स्वर, सूर्य–चंद्र, तारे, अंधकार–प्रकाश… हे प्रकृति रूप ! वाह ! प्रकृति रूप !
हे प्रकृति निर्माता !! इस प्रकृति का अभिन्न अंग ‘मैं मनुष्य‘ कैसे की ? तूने रचना इस प्रकृति की;
अद्भुत, अतुल्य, असीमित, असाधारण…
जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी–आकाश, संपूर्ण प्रकृति मेरा जीवन–
आधार, अधिकार, कोई समाप्ति–क्षति न हो तुझे मुझे धिक्कार यदि हटा दायित्व से
तो स्वाभाविक है, तेरा क्रुद्ध होना क्षति मुझे होना ! नष्ट मुझे होना !
- पुरानी घड़ी Poem on Nature in Hindi
बैठ रहा था मैं नाव में आगे अथाह समंदर था मेला लगा था किनारे पे
वहाँ आती–जाती लहरों का शोर–गुल था मेरी नज़र में ऊपर नीला–अम्बर था
नीचे नीला–समंदर था पर ध्यान में वही लहरों का शोर–गुल था
चला था दूर साथियों से, साथ अपना ही पाने हर कदम पर बदल रही थी
वो हर लम्हे की टिक–टिक कभी सुनाई भी नहीं देती थी तो कभी जोर से बजती थी
बड़ी खुशी हुई, जब दीवार से गिरकर घड़ी टूट गई पर दुःख भी हुआ जब याद आया
समय किसी का मोहताज नहीं बिखरे थे शीशे, निकल गये थे काँटे
पता चली अब मुझे टूटे समय की हालत बदलनी थी अब मुझे पुरानी घड़ी देखने की आदत !
- संघर्ष Poem on Nature in Hindi
बीत गई सन्नाटे की हवा, अब तूफान संघर्ष का आने को है,
शंखनाद भी गूंज उठा, अब घमासान होने को है,
है रण में वीर; हज़ारों यहाँ, पर युद्ध असल में खुद से है,
बस हारना नहीं है खुद से, क्यूंकि जीतना हज़ारों से है, संघर्ष चाहे अंत तक हो, नीर–लहू अपना बहाऊंगा,
रण में अंत तक टिककर, मैं विजयी ध्वज लहराऊंगा, है संघर्ष की घड़ी ये…
आगे बढ़ने की, खुद को साबित करने की,
तो भला भय मुझे किस बात का, ये ना रुकने दूंगा मैं, ना टूटने दूंगा,
वो भी क्या क्षण होगा, जब ध्वज विजय का रोपकर, मैं उत्साह से चिल्लाऊंगा,
ये सोचकर जोश लहू बनकर, नसों में और तेजी से दौड़ता है,
और हर कमी को, हर डर को, पत्थर–सा तोड़ता है,
इसलिए है दृढ़ विश्वास मुझको, विजयी होने का… इस संघर्ष
को जीतने का…!
- जरुरत है… Poem on Nature in Hindi
मंजिल भी मिल जायेगी, हमराही भी मिल जायेंगे, बस घर से निकलने की जरुरत है
अपने भी मिल जायेंगे, दोस्त भी मिल जायेंगे, बस एक लम्बे सफर की जरुरत है
मिल जाएगी सफलता, छा जायेगी शोहरत, मिल जाएगी सफलता,
बस एक बुलंद हौसले की जरुरत है, ना रुको कभी, ना थमो कभी,
ना घबराओ कभी, ना डरो कभी, रास्ते भी मिल जाने है,
अँधेरे भी मिट जाने है, बस एक मसाल जलाने की जरुरत है
ना रहेगा कोई शत्रु यहाँ, जब ना रहेगा कोई शांत यहाँ,
चल पड़ेंगे शूरवीर, चल पड़ेंगे पवन–अश्व, बस एक लगाम खींचने की जरुरत है–
ना कोई दुश्मन आंख उठाएगा इधर, ना कोई आतंकी पाँव धरेगा इधर,
ना आंसू पीने की जरुरत है, ना दर्द सहने की जरुरत है, हर हाथ में सुरक्षा का हथियार हो,
हर तरफ जाबाज़ हो… ना कोई आस्तीन का सांप हो, ना कोई बेरहम गुनाह माफ़ हो,
ना खामोश शख्स बनने की जरुरत है, बस रक्त खौलने की जरुरत है, बस एक देशभक्त बनने की जरुरत है…!
- मेरी महफ़िल में Poem on Nature in Hindi
अब मेरी महफ़िल में कोई नहीं आता, किसी को वक्त ही नहीं मिलता; मेरा हाल जानने को,
अकेला चल रहा हूँ लम्बे सफ़र में, साथी तो क्या, कोई अनजान भी नहीं मिलता
ये जहां के पत्थर पांवो में चुभ रहे हैं… दो पल के लिए;
किसी का सहारा भी नहीं मिलता चल रहा हूँ कड़ी धुप में
छाँव तो क्या, पानी भी नहीं मिलता रुक–रुक कर चलना मैंने सीखा नहीं,
कभी दिन की गर्मी, कभी रात का अँधेरा शुकुन का एक पल भी नहीं मिलता
शिकायत है उस खुदा से; तेरे इस खूबसूरत जहां में इंसान कितना जुल्म सह रहा है,
जीने के लिए वो बार–बार मर रहा है, तू भी डरता है इस जहाँ से, क्यूँ …?
तेरे इस जहाँ की तू खबर नहीं करता आयेगा… जरूर आयेगा.. एक दिन तू !
इस जहां को अपनी जन्नत बनाने वरना डगर–डगर पर ये तेरा
मंदिर–मस्जिद नहीं मिलता !!
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- इतना ना मिला ग़मो को हमसे Poem on Nature in Hindi
इतना ना मिला ग़मो को हमसे थोड़ा तो रूठा दे इन्हें हमसे
कुछ तो मेहरबान हो तू ज़िन्दगी यु न कर शितम हम पर, खुदा भी मिला है तेरे साथ
शिक़वा करे भी तो हम किससे कुछ तो उड़ने दे खुले आसमां में ना रख मुझे तेरे बवंडर में बड़ी मुश्किल से आरा(1) हमने ज़िन्दगी को मत दे इसे एक अल(2) बिगड़ने की
खुशी से रहते है हम तेरे दामन में दे दे जमानत इसे तेरी कैद से यु तो ज़िन्दगी का है नादिर(3) नाता हमसे
पर तबाह है हम नसीब के भरोसे पर यु तो फ़साना है मेरे पास तेरे हर ग़म का पर बेखबर से रहते है तेरे दिये हर ज़ख्म से तड़पते है
हम जन्नत को पाने के लिए पर जहन्नुम में ही जीना है मरने से पहले इतना ना मिला ग़मो को हमसे
थोड़ा तो रूठा दे इन्हें हमसे !
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- पतझड़ Poem on Nature in Hindi
पत्ते झर–झर उड़ रहे पतझड़ का मौसम आया है जो पेड हरे–भरे थे
वो अब भयानक लगते हैं कलियाँ ही मुरझाई हैं अब कहाँ फूल लगते हैं
जीतने वालों के गले में, हार फूलों का होता है और जाने वालों के जनाज़ो पर सजते हैं
कुछ स्वागत में बरसात है और बाकि पत्थरों को चढ़ते हैं
मैं पतझड़ का सूखा काटा ही सही मेरे चुभने से लोग संभलकर चलते है
सरसराती हवाओं में आवाज़ पत्तो की नही, झोखों से होती है, पतझड़ का मौसम आता है
और चला जाता है ग़मो को सिमट कर अपने साथ ले जाता है उसके बाद सावन के नये पत्ते–फूल
और वही कांटे मनभावन लगते हैं पतझड़ के मौसम के बाद हरियाली के मेले लगते है
काले बादलों से बीज अंकुरित होते है पुराने पहाड़ों पर फिर से नवीन कानन लगते है
हरे भरे मौसम में, मनमोहन सावन लगते है पतझड़ के मौसम के बाद हरियाली के मेले लगते है !
- Poems in Hindi For Class 10
- Poems in Hindi for Class 9
- Poems in Hindi for Class 8
- Poems in Hindi for Class 7
Thank you for reading my Poem on Nature in Hindi I’m you would like it and you will share with your friends and family which will make my day. These Poems on Nature is especially for nature love I’m sure you would understand some word which I use in these Poems.
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