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- किरणों का जाल Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
उषा ने फेंका रवि–पाषाण निशा–भाजन में; जल्दी जाग, प्रिय, देखो पा यह संकेत गए कैसे तारक–दल भाग!
और देखो तो उठकर, प्राण, अहेरी ने पूरब के लाल
फँसा ली सुलतानी मीनार बिछा कैसा किरणों का जाल !
- जीवन–मदिरा सूख Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
उषा ने ले आँगड़ाई, हाथ दिए जब नभ की ओर पसार, स्वप्न में मदिरालय के बीच सुनी तब मैंने एक पुकार
‘उठो, मेरे शिशु नादान, बुझा ली पी–पी मदिरा भूख,
‘नहीं तो तन–प्याली की शीघ जायगी जीवन–मदिरा सूख ।”
- खोलो द्वार Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
श्रवण कर अरुण–शिखा–ध्वनि कान उठे यात्री सब साथ पुकार, पड़े थे जो मदिरालय धोर “अरे, जल्दी से खोलो द्वार !
“नहीं है वया तुमको मालूम खड़ी जीवन–तरणी क्षण चार,
बहुत सांभव है जा उस पार न फिर यह आ पाए इस पार ।
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- ईसा का उच्छ्वास Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
नई तरु–आभा नवल समीर जनाते, आया नूतन वर्ष, जर्जरित इच्छाएँ भी आज पा रहीं यौवन का उत्कर्ष ।
मनीषी भोग रहे एकांत, एक मधु ऋतु उनके भी पास
ज्वलित कर मूसा का तरु–ज्योति, समीरण, ईसा का उच्छ्वास ।
- पान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
सभी पाटल–पुष्पों के साथ अरस–आराम हुआ बर्बाद, रही जमशेदी प्याले सात चक्रवाले की किसको याद ?
मगर अब भी लहराते बार सलिल के कूलों पर छविमान
मगर अब भी मिट्टी का पात्र कराता माणिक मधु का पान ।
- सुरीली तान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
युगों से मौन हुआ दाऊद, कभी था जिसका सुमधुर गान, मगर बुलबुल अब भी स्वर्गीय स्वरों में छेड़ सुरीली तान,
सुना जा पटेल को नित्य “सुरा पी, मधु पी मदिरा लाल !”
जिसे पीकर हो जाएँ शीघ्र गुलाबी उसके पीले गाल।
- वह आता पर मार Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
बसंती ज्वाल–अग्नि में, आज पिलाकर मधु मदिरा साह्लाद, उड़ा दो अपने करके राख हृदय के पश्चाताप–विषाद ।
काल–पक्षी के पर दिन–रात, उसे परिमित पथ करना पार;
प्रिये, तुम करतीं य्थ विलंब, उड़ा, ली, वह आता पर मार !
- अपने साथ Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
कली–कुसुमों के वन के बीच पाँव रखता है ज्याही प्रात, कली–दल खिल उठता अनजान, कुसुम–दल झर पड़ता अज्ञात ।
अरे, आता जो आज वसंत साज पाटल से अपने हाथ,
हमारे कैकुबाद–जमशेद जाएगा ले कल अपने साथ।
- प्रिये Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
सोचकर खुसरो का भाग्य और कर कैकुबाद की याद, जिन्हें संसार गया है भूल, समय केवल करग ब्वाद ।
बुलाए हातिम दे–दे भोज, उठाए रुस्तम रण को हाथ;
न करके उनकी कुछ परवाह प्रिये, तुम आओ मेरे साथ।
- घास Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
चलो, चलकर बैठे उम ठौर, बिछी जिस थल मखमल–सी घास, जहाँ जा शस्य–श्यामला भूमि धवल मरु के बैठी है पास,
जहाँ कोई न किसी का दास, जहाँ कोई न किसी का नाथ,
नृपति महमूद सिंह भाग जहाँ यदि हमको देखे साथ ।
- नंदन उद्यान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
धनी सिर पर तरुवर की डाल, हरी पाँवों के नीचे घास, बग़ल में मधु मदिरा का पात्र, सासने रोटी के दो ग्रास,
सरस कविता की पुस्तक हाथ, और सब के ऊपर तुम, प्राण,
गा रहीं छेड़ सुरीली तान, मुझे अब मरु, नंदन उद्यान ।
- ढोल Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
सुना मैंने, कहते कुछ लोग मधुर जग पर मानव का राज ! और कुछ कहते–जग से दूर स्वर्ग में ही सब सुख का साज !
दूर का छोड़ प्रलोभन, मोह, कगे, जो पास डीसी का मोल,
सुहाने भर लगते हैं, प्राण, अरे, य दूर–दूर के ढोल !
- झोली Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
खिली जो अपने चारों ओर, सुनो, क्या कहती पटेल–माल “हँस–हँसकर उपवन के बीच लूटती मोती मैं इस काल ।
“रेशमी झोली अपनी फाड़ अभी इस वन में दूँगी फेंक,
“और अपनी निधियां अनमोल लुटा दूंगा मैं क्षण में एक ।”
- धूसरित मरु Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
जगत की आशा जाज्वल्य, लगता मानव जिन पर आँख, न जाने सब की सब किस ओर, हाय ! उड़ जातीं बनकर राख ।
किसी की यदि कोई अभिलाष फली भी तो वह कितनी देर ?
धूसरित मरु पर हिमकण–राशि चमक पाती है जितनी देर ।
- उखाड़ Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
समेदा जिन, कृपणों ने स्वर्ण, सुरक्षित क्या उसके मूँद, लुटाया, और, जिन्हेंने खूब, लुटाते जैसे बाल बूंद,
गड़े दोनों ही एक समान, हुए मिट्टी दोनों के हाड़,
न कोई हो पाया वह स्वर्ण, जिसे देखें फिर लोग उखाड़।
- मेहमान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
जीर्ण जाती है एक सराय, दिवा–निशि जिसके द्वार विशाल, खोलती एक उषा उठ प्रात, दूसरा, संध्या, सायंकाल।
यहाँ आ बड़े–बड़े सुल्तान बड़ी थी जिनकी शौकत–शान,
न जाने कर किस और प्रयापा गए, बस दो दिन रह मेहमान ।
- श्वान लात Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
जहाँ था जमशेदी दरबार, शान से होता था मधुपान, वहाँ स्वच्छंद घूमते सिंह, वहाँ निर्भीक भूकते श्वान ।
और, वह बादशाह बहराम, अहेरी जो था जय–विख्यात,
पड़ा निद्रा में आज अचेत गधे की सिर पर श्वान लात ।
- गोद Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
वही होते अति लाल गुलाब, जड़ें जिनकी कर पातीं पान, मड़े अतनीपतियों का खून; समझ यह, आता मुझको ध्यान,
हाय, वन की हर सुंबुल–वेलि, रही जो हिल–खिल आज समोद,
किसी सुमुखी की कुंतल–राशि, पड़ी जी गिर उपवन की गोद ।
- पौधे अनजान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
अरे, यह कितने कोमल पात, चुंबक से अपने अम्लान, ढक रहे जो सरिता का कूल विचरते हम–तुम जिस पर, प्राण !
धीरे धीरे से इस पर पाँव, कौन जाने, हो सकता, प्राण !
किन्हीं मृदु अधरों को ही चुम उगे हों यह पौधे अनजान !
- प्यारी मदिरा Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
पिलाकर प्यारी मदिरा आज नशे में इतना कर दो चूर, भविष्य के भय जाएँ भाग, भूत के दारुण दुख हों दूर।
प्रिये, लेना मत कल का नाम, नहीं कल पर मुझको विशवास,
अरे, कल दूर, एक क्षण बाद काल का मैं हो सकता ग्रास ।
- अरमानों की भूख Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
अरे, वे सुंदरता, वे श्रेष्ठ, जिन्हें हम करते इतना प्यार, क्रूर–कटु काल–कर्म के, हाय, हो गए कितने शीघ्र शिकार !
न न पी पाए प्याले चार, गया उनका जीवन–मधु सूख,
चले करने विश्राम अनंत, लिए निज अरमानों की भूख ।
- रंग रेल मचाने Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
उन्होंने छोड़ा जो उद्यान, हमारा वह आनंद–निवास, वहाँ सज प्रकृति वसंती साज हृदय में भर्ती हास–हुलास।
करें उन पर रंगरेली आज, जहाँ वे, पर, जाना उस ठौर;
हमारे ऊपर भी रंग रेल मचाने को आएंगे और ।
- शेष Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
अरे, अब भी जो कुछ है शेष, भोग वह सकते हम स्वच्छंद, राख में मिल जाने के पूर्व न क्यों कर लें जी भर आनंद;
गड़ेंगे जब हम होकर राख राख में, तब पिर कहाँ चसंत,
कहाँ स्वरकार, सुरा, संगीत, कहाँ इस सूनेपन का अंत !
- रे मानव नादान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
भोगने को होते तैयार बहुत से वर्तमान संसर, पहुँचने को आगामी स्वर्ग बहुत स सहते कष्ट अपार;
अँधेरे की चढ़कर मीनार मुअज्ज़िन यह करता आह्वान
“रहेगा दोनों ओर निराश, “भटक मत, रे मानव नादान!
- स्वर्ग–जग Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
स्वर्ग–जग पर करते शास्त्रार्थ जता विद्वता का अभिमान, अरे, कल जो सब पंडित–विज्ञ, गड़े मूढ़ों के आसमान ।
कुचल दी जाने को सब ओर गई दी उनकी वाणी छीट,
बंद करने को मुख वाचाल गई दी मिट्टी उन्हें पीट ।
- प्रिये Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
प्रिये, आ बैठ मेरे पास, सुनो मत क्या कहते विद्वान, यहाँ निश्चित केवल यह बात कि होता जीवन का अवसान ।
यहाँ निश्चित केवल यह बात, और सब झूठ और निर्मूल;
सुमन जो आज गया है सूख, सकेया वह न कभी फिर फूल ।
- प्रस्थान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
पांडितों–विद्वानों के पास गया यौवन में बार अनेक स्वयं मैं उत्सुकता के साथ समझने उनका तर्क–विवेक ।
युक्तियाँ भूल–भुलैया एक लगी, जिसमें हिर–फिर कर, प्राण,
उसी ड्योदी के पहुँचा पास, किया था जिस पर से प्रस्थान ।
- छोड़ा जाता हूँ उच्छ्वास Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
ज्ञानियों को ले अपने साथ ज्ञान के मैंने बोए बीज, उगाने का करते श्रम–यत्न उठा मेरा तन–प्राण पसीज;
और, इस खेती के फल–रूप यही कहने को मेरे पास
“लिये आता था अश्रु–प्रवाह, “छोड़ा जाता हूँ उच्छ्वास ।”
- पवमान महान Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
अरे, आया क्यों जग के बीच ! कहाँ से तृण–सा मुझको तोड़, बहा लाई है कोई धार, लाई जो गुजराती–तट पर छोड़ ?
जरात क्यों देना होगा छोड़ ? कहाँ को, रज–कण मुझको जान,
उड़ा ले जाएगा दिन एक किसी मरु का पवमान महान ?
- अन्यायी की याद Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi
न पूछा, फेंक दिया इस ओर, हमें समझा इतना निरुपाय ! पूछा, खींच लिया उस ओर, बड़ा यह तो हम पर न्याय !
प्रिये, प्याले पर प्याला ढाल बढ़ा दो इतना मद–उन्माद,
न जाए जन्म–निधन पर ध्यान, न आए अन्यायी की याद !
Thank you for reading Harivansh Rai Bachchan poem in Hindi. My main motive for sharing these poems is to tell people how they write their poems I’m you would like it and you will share Harivansh Rai Bachchan’s poems.
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